श्रीभक्ति विनोद ठाकुर कहते हैं
- "ज्ञान का सार है कि जीवन
अनित्य है एवं अनेक विपदाओं से ग्रस्त है । श्रीहरिनाम का पूर्ण आश्रय लेकर के
अपने कर्तव्य - कर्मों को करते रहना चाहिए । हरि - नामामृत का पान करके त्रितापों की जलन को शान्त करें।
इस चौदह - भुवनों के ब्रह्मांड में हरिनाम से अधिक मूल्यवान कुछ भी नहीं है।
साधु - संग में दस तरह के
नामापराधों से रहित शुद्ध - नाम का कीर्तन ही सांसारिक कष्टों कि निवृति व
पूर्णानन्द की प्राप्ति का एक मात्र उपाय है। भक्ति में उन्नति व शाश्वत मंगल लाभ
करने के लिए श्रीकृष्ण - विमुख सांसारिक लोगों के प्रतिकूल संग का त्याग करना
आवश्यक है। "
Jai ho
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