Thursday 2 November 2017

कहाँ हैं तुम्हारे भगवान्: श्रील गुरुदेव जी का डा. सी.वी. रमन जी से कथोपकथन


[परमाराध्य श्रील गुरुदेव में विषयवस्तु को अतिशीघ्र ग्रहण करने एवं साथ-साथ उसका सदुत्तर देने की अलौकिक शक्ति कई स्थानों पर देखी गयी। वे आधुनिक युग के तार्किक मनुष्य को अति आधुनिक युक्ति और उदहारण के साथ समझाने की असाधारण क्षमता रखते थे। इसलिए जो भी उनके पास आते, वे ही उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हो जाते थे। श्रील गुरुदेव जी हरिकथामृत वितरण के समय किस प्रकार के मार्मिक उदहारण दिया करते थे, उनके आश्रित लोग तो जानते ही हैं। जो लोग उनके समीप नहीं आ पाये, उनके लिए एक घटना (विश्वविख्यात वैज्ञानिक डा.सी.वी. रमन जी से श्रील गुरु महाराज जी की वैज्ञानिक युक्तिपूर्ण तथा भक्ति में उत्साहवर्धक प्रश्नोत्तरी) उल्लेखित की जा रही है जो कि हरिकथा प्रसंग में श्रील गुरु महाराज जी के श्रीमुख से ही हमने सुनी है।]
            यह सन् 1930 की बात है, तब श्रील प्रभुपाद जी प्रकट थे। श्रीप्रभुपाद जी के प्रकट काल में कलकत्ता के बाग बाज़ार स्थित श्रीगौड़ीय मठ में, श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में विशाल धर्म-सम्मलेन होता था, जो कि एक महीने तक चलता था। इस सम्मलेन में प्रतिदिन कोई न कोई विशिष्ट व्यक्ति सभापति का आसन ग्रहण करता था। उक्त धर्म सम्मलेन में भारत के विख्यात वैज्ञानिक डा.सी.वी. रमन के छात्र भी श्रीगौड़ीय मठ के विद्वान् स्वामियों के प्रवचनों को सुनने के लिए आते थे। एक दिन सभी छात्र मिल कर श्रील प्रभुपाद जी के पास गये और उन्होंने निवेदन किया कि हम देखते हैं की आपके इस धर्म-सम्मेलन में प्रतिदिन कलकत्ता के किसी न किसी विशिष्ट व्यक्ति को सभापति के आसन पर बैठने के लिए निमन्त्रित किया जाता है, परन्तु हमारे अध्यापक डा.सी.वी. रमन जी को निमन्त्रित नहीं किया जाता। ऐसा क्यों? उनका नाम तो सारे विश्व में विख्यात है। छात्रों की बात सुनकर प्रभुपाद जी ने कहा कि उनको निमन्त्रण करने में हमें कोई आपत्ति नहीं है। ऐसा कह कर श्रील प्रभुपाद जीने हमारे गुरुदेव जी को निर्देश दिया कि वे डा.सी.वी.रमन जी को धर्म सम्मलेन में सभापति पद ग्रहण करने के लिए निमन्त्रण दें।

                श्रील गुरुदेव जी डा.सी.वी.रमन से मिलने पहले उनके घर गये परन्तु डा.रमन उस समय घर पर नहीं थे। उनकी स्त्री ने बताया कि इस समय वे सरकुलर रोड़ पर स्थित अपनी laboratory (गवेषणागार) में होंगे। श्रीमती रमन का जवाब सुनकर श्रील गुरुदेव जी एक चपरासी के साथ, जो कि श्रीमती रमन ने ही श्रील गुरुदेव जी के साथ भेजा था, डा.रमन की लेबोरेटरी पर पहुँचे। डा. रमन के साथ जब श्रील गुरुदेव जी का साक्षत्कार हुआ, उस समय वे अपनी लेबोरेटरी की दूसरी मन्ज़िल ने स्थित एक बड़े हाल के कोने में बैठे हुए अकेले ही कुछ गवेषणा कर रहे थे। डा. रमन बंगला या हिन्दी अच्छी तरह से नहीं जानते थे, इसलिए श्रीगुरुदेव जी की उनके साथ अंग्रेज़ी में ही बातचीत हुई।

                सर्वप्रथम डा.रमन ने श्रीलगुरुदेव जी से उनके आने का कारण पूछा। श्रील गुरुदेव जी ने कहा- ‘कलकत्ता के बाग बाज़ार स्थित श्रीगौड़ीय मठ में, श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी उपलक्ष्य में मासव्यापी धर्म-सम्मलेन होता है, जिसमे प्रतिदिन कलकत्ता के कोई न कोई विशिष्ट सज्जन सभापति का आसन ग्रहण करते हैं। आप भी एक दिन सभापति के आसन को अलंकृत करें, ये ही हमारी प्रार्थना है।’
श्रील गुरुदेव जी की बात सुनकर डा.रमन ने कहा-‘तुम्हारे केष्ट-विष्ट् को (यानि कृष्ण-विष्णु को) मैं नहीं मानता हूँ। इन्द्रियों द्वारा जो प्रत्यक्ष नहीं होती, ऐसी काल्पनिक वस्तुओं के लिए मैं समय नहीं दूँगा। मेरा समय बहुत कीमती है। हाँ विज्ञानं या शिक्षा के विषय में कोई सभा होने से मैं जा सकता हूँ।’
                 
श्रील गुरुदेव : आपके छात्र प्रतिदिन बाग बाज़ार स्थित गौड़ीय मठ में स्वामी जी लोगों के भाषण सुनने के लिए आते हैं। उसी सभा में हम कलकत्ता के विशिष्ट व्यक्तियों को सभापति बनाते हैं। आपके छात्रों की ही इच्छा है कि एक दिन आप भी सभापति का आसन ग्रहण करें। अपने गुरुदेव जी के निर्देशानुसार मैं आपको निमन्त्रण देने आया हूँ। आप हमारी प्रार्थना को स्वीकार कर लीजिए।

डा.रमन: क्या तुम अपने भगवान् को दिखा सकते हो? यदि दिखा सको, तो जाऊँगा।
[जिस हाल (hall) में बातचीत हो रही थी, उस हाल के एक ओर कोई भी खिड़की या दरवाज़ा नहीं था, सिर्फ एक लम्बी दीवार थी, जिसके दूसरी ओर पूरा उत्तरी कलकत्ता था।]

श्रील गुरुदेव: अपने सामने खड़ी इस दीवार के पीछे मैं कुछ नहीं देख पा रहा हूँ, यदि मैं कहूँ कि इस दीवार में पीछे कुछ नहीं है, तो क्या मेरी बात सच होगी?

डा.रमन: तुम नहीं देख सकते हो, परन्तु मैं अपने यन्त्र में द्वारा देख सकता हूँ?

श्रील गुरुदेव: यन्त्र की भी तो एक सीमा है। जितनी दूर यन्त्र की योग्यता है, माना व हाँ तक आपने देख लिया परन्तु उसके बाद कुछ नहीं है-ऐसा कहना क्या सच होगा?

डा.रमन: हो या न हो, उसके लिए मैं समय नहीं दूँगा। जो बात मेरे sense experience में नहीं आ सकती, उसके लिए मैं अपना कीमती समय नहीं दे सकता। क्या तुम भगवान् को दिखा सकते हो? यदि दिखा सको मैं समय दूँगा।
श्रील गुरुदेव: अपने जो वैज्ञानिक सत्य अनुभव किये है, यदि आपके छात्र आपसे ये प्रश्न करें कि पहले हमें वैज्ञानिक सत्य का अनुभव कराओ बाद में हम आपकी शिक्षा की ओर ध्यान देंगे, तब आप उन्हें क्या कहेंगे?

डा.रमन: (उच्च स्वर से) I shall make them realize; (मैं उन्हें अनुभव करा दूँगा।)

श्रील गुरुदेव: न, पहले आप अनुभव करा दें, बाद में वे आपके पास शिक्षा ग्रहण करेंगे?
डा.रमन: नहीं, जिस पद्धति को अवलम्बन करके मैंने वैज्ञानिक सत्यों का अनुभव किया है, वही पद्धति उन्हें भी ग्रहण करनी होगी। (No, they are to come to my process through which I have realized the truth.) पहले उन्हें फलाँ विषय को लेकर B.Sc. पढ़नी होगी, उसके बाद M.Sc. करनी होगी। उसके बाद यदि पांच-छः साल वह मेरे पास पढ़े, तब मैं उनको समझा सकता हूँ।
श्रील गुरुदेव: आपने जो बात कही, क्या भारतीय ऋषि-मुनि लोग उस बात को नहीं कह सकते? उन्होंने जिस पद्धति से आत्मा-परमात्मा-भगवान् को अनुभव किया है, आप भी उसी पद्धति को अवलम्बन करके देखें कि भगवान् को अनुभव किया जा सकता है या नहीं? आप अपने उपलब्ध लौकिक वैज्ञानिक सत्य को भी अपने छात्रों को अनुभव नहीं करा पा रहे हैं, उसके लिए उन्हें विभिन्न प्रकार की विधियों को अपनाना पड़ रहा है तो जो सर्वशक्तिमान, इन्द्रिय-ज्ञानातीत, अलौकिक परमेश्वर हैं, उन्हें क्या आप ऐसे ही जान सकते हैं? इसलिए जिस उपाय से भगवान् की उपलब्धि होती है आप भी उसी उपाय को ग्रहण करके देखो-होती है या नहीं? यदि उपलब्धि न हो तो आप छोड़ देना परन्तु पहले ही आप कैसे मना कर सकते हैं? डा. रमन कोई जवाब न दे सके।
कुछ समय पश्चात् डा.रमन अपने आप कहने लगे कि वे कृष्ण सम्बन्ध में कुछ नहीं जानते, वहाँ जाकर वे क्या कहेंगे? इस विषय को जो जानते हैं उन्हें निमन्त्रण करना अच्छा है।
श्रील गुरुदेव जी की प्रत्युत्पन्नमतित्व एवं उपस्थित बुद्धि इस प्रकार थी कि उनके सामने कोई अयुक्ति की बात कहकर टिक नहीं सकता था। केवल तथाकथित विद्वता के द्वारा ये असाधारण योग्यता सम्भव नहीं है। जो शिष्य गुरुदेव के प्रति समर्पित-आत्मा हैं, जिन्होंने गुरुदेव जी की कृपा से सत्य वस्तु को साक्षात् अनुभव कर लिया है, गुरु शक्ति के प्रभाव से वे एक प्रकार की ऐसी ईश्वरीय शक्ति प्राप्त कर लेते हैं, जिसके सामने भगवद्-अनुभूतिरहित व्यक्तियों की बुद्धिमत्ता नहीं चल पाती।




{यथार्थ ज्ञानी व्यक्ति कभी भी व किसी भी अवस्था में धैर्य नहीं खोते।}

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Jai Gurudeva